चतुर मछुवारा

किसी समय किसी देश में एक मछुवारा अपने परिवार के साथ रहता था। मछुवारा बहुत चतुर था। इस कारण कम आय होने पर भी उसका जीवन सुगम था। एक दिन उसके जाल में एक बहुत बड़ी सुनहरे रंग की मछली फंस गई। मछुवारा उसे देखकर सोचने लगा कि बाजार में तो इसका कोई खास मूल्य नहीं मिलने वाला। क्यों न इसे राजा को उपहार में दे दिया जाए। जब मैंने अपना जीवन मछली पकड़ने में व्यतीत किया है और ऐसी कोई मछली पहले नहीं देखी तो संभव है राजा ने भी न देखी हो। और खुश होकर मुझे कुछ इनाम दे। ऐसा सोचकर मछुवारा मछली को लेकर राजमहल जा पहुंचा।

राजा ने उसे अपने मुलाकाती कक्ष में बुला लिया। राजा के साथ उसकी प्रिय रानी भी थी। राजा मछली को देखकर बहुत प्रसन्न हुआ और मछुवारे को सौ चांदी के सिक्के देने का आदेश दिया। मछुवारा बहुत खुश हुआ। किंतु रानी जो कि कृपण स्वभाव की थी रूष्ट हो गई। उसने राजा से कहा कि जरा सी मछली के लिए 100 चांदी के सिक्के देना तो राजकोष लुटाना है। आप तुरंत उससे यह राशि वापिस ले लें। राजा ने कहा यह कैसे संभव है? मैं राजा हूँ। अपना दिया हुआ ईनाम अकारण कैसे वापिस ले सकता हूँ? मैं आपको कारण बताती हूँ, रानी ने कहा। आप उसको वापिस बुलाइए और उससे पूछिए कि मछली नर है या मादा है? वह नर कहे तो आप उसे कह देना हमे तो मादा चाहिए, नर तुम ले जाओ। और पैसे वापिस ले लेना। अगर वो मादा कहे तो आप यही बात मादा के लिए दोहरा देना। राजा को यह उचित नहीं लगा। तो भी रानी को प्रसन्न करने के लिए उसने द्वारपाल से मछुवारे को बुलाने को कहा।

मछुवारे के आने पर राजा ने उससे प्रश्न किया। यह मछली नर है या मादा? मछुवारा बहुत होशियार था। उसने सोचा मछली तो मरी हुई है, अब इसके नर या मादा होने में क्या फर्क पड़ता है? हो न हो, इसमें कोई चाल है। अतः वह सावधानी से बोला महाराज, इस प्रकार की मछलियां उभयलिंगी होती हैं। इनमें नर और मादा अलग-अलग नहीं होते। राजा जोर से हंसा। उसने कहा इस मछुवारे से चांदी की मुद्राएं वापिस ले ली जाएं और इनके स्थान पर इसे उतनी ही सोने की मुद्राएं दी जाएं। मछुवारा राजा की जय बोलता हुआ चला गया।

मछुवारा तो चला गया किंतु रानी का आक्रोश और बढ़ गया। उसने फिर राजा से आग्रह किया कि उस मछुवारे को बुलाओ और उससे धन वापिस ले लो।

राजा ने कहा यह ठीक नहीं होगा। किंतु रानी न मानी तो राजा ने कहा कि कोई कारण तो हो। इस पर रानी ने कहा कि उससे पूछो कि मछली को जाल से पकड़ा है या कांटे से? वह जो भी कहे तुम उसका उलटा बताकर धन वापिस ले लेना। राजा ने कहा कि मछुवारा बहुत चालाक है। वह तुम्हारे जाल में फंसने वाला नहीं। किंतु रानी ने एक न सुनी। लिहाजा मछुवारा फिर बुलाया गया।

मछुवारे, राजा ने कहा। तुमने यह मछली कांटे से पकड़ी है या जाल से?

मछुवारा सतर्क हो गया। उसने सोचा मैंने मछली कैसे भी पकड़ी हो, इससे इन्हें क्या? हो न हो इस बात में कोई चाल छुपी हुई है। अतः उसने बहुत सोच समझकर कहा, महाराज, मछली को आकर्षित करने के लिए कांटा लगाना पड़ता है किंतु इतनी बड़ी मछली केवल कांटे से नहीं पकड़ी जा सकती, अतः जाल भी बिछाना पड़ता है। इस प्रकार इस प्रकार की मछली को पकड़ने के लिए कांटा और जाल दोनों का प्रयोग करना पड़ता है। अब तो राजा के पेट में बल पड़ गया। उसने बड़ी मुश्किल से अपनी हंसी को काबू किया और प्रसन्नता से बोला, इसे 100 स्वर्ण मुद्राएं और दी जाएं।

इस प्रकार अपनी मनमानी न होते पाकर रानी अत्यंत रूष्ट हो गई और ऊपर बारजे में भाग गई। किंतु कुछ देर के पश्चात वह अत्यंत प्रसन्न मुद्रा में वापिस आ गई। राजा के आश्चर्य का ठिकाना न रहा। उसने प्रश्नवाचक मुद्रा में रानी की ओर देखा।

तुमसे तो कुछ होता नहीं। बस ऐसे ही राजा बने हो। देखो अब मैं कैसे इस ढीठ मछुवारे की अक्ल ठिकाने लगाती हूँ। न सिर्फ सारा पैसा वापिस लूंगी वरन बच्चू को कारावास भी भेजूंगी। राजा ने उसे समझाने की बहुत चेष्टा की किंतु उसने एक न सुनी। इतने में ही मछुवारा भी स्वर्ण मुद्राएं संभालते हुए वहां पर हाजिर हुआ।

मछुवारे, रानी ने कड़कती हुई आवाज में कहा। महाराज ने तुम्हे अपार धन पुरस्कार में दिया। किंतु तुम इसके बिलकुल योग्य नहीं हो।

मुझसे क्या भूल हुई महारानी जी?

भूल? रानी अत्यंत कठोर स्वर में बोली। तुमने अपराध किया है। जिसका तुम्हें दण्ड मिलेगा।

मुझसे क्या अपराध हुआ?

महाराज ने तुम्हें इतना धन दिया। तुम्हें इस धन से कुछ दान धर्म करना चाहिए था जिससे लोग महाराज को दुआएं देते। यह तो तुमसे हुआ नहीं बल्कि तुमसे एक मुद्रा नीचे गिर गई तो तुमने उसे भी उठा लिया। यह न सोचा कि किसी गरीब गुरबा को मिल जाए तो उसका भला हो। तुम अत्यंत लालची हो। और किसी ईनाम के हकदार नहीं।

किंतु महारानी जी, मैंने किसी लालच में स्वर्ण मुद्रा नहीं उठाई।

तो क्यों उठाई?

महाराज, स्वर्ण मुद्रा की एक ओर हमारी राज मुद्रा छपी है जो कि आदरणीय है। और दूसरी ओर महाराज का चित्र छपा है। जो हमारे लिए परम आदरणीय है। मैं एक राजभक्त हूँ। मैं भला अपनी राज मुद्रा और अपने महाराज के चित्र का अनादर कैसे कर सकता हूँ?। मैं उसे धूल मिट्टी में पड़ा हुआ नहीं देख सकता। अतः मैंने राज भक्ति के वशीभूत उस मुद्रा को उठाया किसी लालच के वश नहीं।

मछुवारे का उत्तर सुनकर राजा ने जोर का अट्टहास किया। और मछुवारे को अपनी सलाहकार परिषद् का सदस्य मनोनीत करते हुए उसके लिए जागीर की घोषणा की।

इस प्रकार चतुर मछुवारा अपनी प्रत्युत्पन्नमति के कारण मछुवारे से जागीरदार बन गया। इससे यह भी विदित होता है कि आपके विरोध करने वाले वस्तुतः आपके लिए बहुत बड़ा अवसर भी हो सकते हैं।

 

 

Ramakant Mishra

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