अभी कुछ बाकी है
पुराने समय की बात है। एक पंडित जी थे। भिक्षाटन करके जीवन यापन करते थे। उनको ज्योतिष का भी अच्छा ज्ञान था। एक दिन की बात है, वे भिक्षा के लिए निकले तो दूर तक चले गए। किंतु उस दिन संयोग कुछ ऐसा रहा कि कुछ भी भिक्षा न मिली। जब दोपहर के बाद धूप झुकने लगी तो पंडित जी ने वापिस लौटना शुरू किया। भूखे प्यासे थे, कुछ चिड़चिड़े हो रहे थे कि तभी उनका पैर किसी वस्तु से टकरा गया। उन्होने झुंझलाकर देखा तो पाया कि वह किसी मानव की खोपड़ी थी। अज्ञात कारणों से पंडित जी ने झुककर उसे उठा लिया। ज्योतिषी तो थे ही, उत्सुकतावश खोपड़ी के भाल पर दृष्टि डाली तो चकित हो गए।
पंडित जी ने पढ़ा – ऊसर मरण विदेश, अभी कुछ बाकी है।
चारों तरफ ऊसर था, दूर-दूर तक कोई बस्ती नहीं थी। अतः स्पष्ट था कि उस व्यक्ति का मरण विदेश में हुआ था। किंतु बाकी क्या है? मरने के बाद क्या बाकी? पंडित जी बड़े आश्चर्य में पड़े। और फिर उन्होने खोपड़ी को अपने झोले में डाल लिया।
उस दिन पहर गए रात पंडित जी अपने घर पहुंचे। झोला खूंटी पर टांगा और स्वयं स्नान इत्यादि कर भगवत भजन करने लगे।
कुछ ही देर में पंडित जी को ध्यान लगाने में असुविधा होने लगी। कारण यह था कि उनकी पत्नी घर में ओखल में कुछ कूट रही थी जिसके प्रहार से पंडित जी को ध्यान लगाने में व्यवधान हो रहा था।
”यह स्त्री भी अपनी तरह एक ही है। भली मानस से यह न हुआ कि दिन में कूटना पछोरना निपटा लेती। सोती रही होगी दिनभर।” पंडित जी ने सोचा।
किंतु जब लगातार मूसल की चोट की आवाज पंडित जी को व्यथित करती रही तो उनसे न रहा गया।
”भली मानस, दो घड़ी पूजा तो चैन से कर लेने दिया कर।” वे जोर से बोले।
”अरे तो मैं क्या करूँ?” पत्नी का झुंझलाया स्वर आया, ”तुम्हारे ही पेट-पूजा का प्रबंध कर रही हूँ।”
”तो ये काम दिन में न हो सकता था?”
”दिन में कैसे करती? भिक्षा तो तुम अब लाए हो।”
”भिक्षा? कैसी भिक्षा?” पंडित जी आश्चर्य से बोले, ”आज तो कोई भिक्षा नहीं मिली।”
”तो फिर तुम्हारे झोले में क्या था?” अब पत्नी के आश्चर्यचकित होने की बारी थी।
”हे भगवान!” पंडित जी के मुंह से निकला, ”तो यह बाकी था।”