मार्जार श्राद्ध (एक संस्कृत आख्यान)
घर में एक पालतू बिल्ली थी। बिल्ली की जैसे कि आदत होती है, हर पात्र में मूंह डाल देने की आदत थी। अतः श्राद्ध वाले दिन घर की मालकिन बिल्ली को श्राद्ध के भोजन को जूठा करने से रोकने के लिए उसको एकांत में बंद कर देती थी। बहू ने देखा कि सास ने श्राद्ध वाले दिन सबसे पहले उठकर बिल्ली को एक टोकरी के नीचे ढक दिया और फिर घर की साफ – सफाई की तदुपरांत स्नान इत्यादि से निपटकर भोजन तैयार किया और दोपहर में विधि-विधान से तर्पण इत्यादि निपटाकर ब्राहमणों को भोजन कराया तदुपरांत सभी परिवार वालों को भोजन कराया और फिर टोकरी के नीचे से बिल्ली निकाली और बिल्ली को भी भोजन कराया। इसी प्रकार अगले वर्ष भी हुआ। समय गुजरता रहा और एक दिन सास दिवंगत हो गई। संयोग की बात बिल्ली भी न रही। ऐसे में श्राद्ध का दिन आ गया। सभी तैयारियां हो गई। जब श्राद्ध के दिन बहू उठी तो उसे बिल्ली की याद आई। अब क्या हो? उसने झिंझोड़कर पति को जगाया।
– ” अजी सुनते हो। जल्दी उठो। ”
” अरे क्या हुआ भई। ”
” अरे हुआ क्या। बिल्ली तो है ही नहीं, श्राद्ध कैसे होगा?”
”बिल्ली का श्राद्ध से क्या मतलब?”
”तुम्हें कुछ पता तो रहता नहीं। बिना बिल्ली के श्राद्ध कैसे होगा?”
”क्या मतलब?”
” मतलब -वतलब कुछ नहीं। फौरन उठो और कहीं से बिल्ली लेकर आओ। तभी मैं घर की साफ-सफाई शुरू कर पाऊंगी।”
” अरे लेकिन बिल्ली से साफ-सफाई क्या मतलब है?”
”तुम्हें कुछ मालूम भी है। मैं वैसे ही करूंगी जैसे कि अम्मा जी करती थी। बिना बिल्ली के कुछ नहीं होगा, समझे। ”